Friday, December 05, 2008

शेर ओ शायरी

दिलों के टूटने पर ज़माने में हंगामा खड़ा नहीं होता
दिलों के जुड़ने पर जाने क्यूँ समाज टूटते हैं

वो बेखबर हमसे मिलने की उम्मीद करता रहा ताउम्र
मौत के बाद उसे उसे अपनी कब्र मेरे बगल मिली

कभी इन आंसुओं को पे के देखो
कितना जलता है जिगर भी , आँख भी , वक्त भी

समंदर की गहराई से भी मैं तुझको ले आऊंगा
मैंने तुमको हमेशा अपने दिल की गहराईयों में छिपाया है

०५.१२.०८ सुजीत कुमार (दूसरा पन्ना )

0 comments: