Wednesday, January 21, 2009

आँचल में सजा लेना कलियाँ

This is one of those songs that reminds me of my golden days of childhood at my small village Maheshpur. Where the evening used to start with a dim lantern light.. then slowly a dark night would gulp down even that light and whole area would be just emerging out in one sound that of titahri..... 

आंचल में सजा लेना कलियाँ जुल्फों में सितारें भर लेना
ऐसे ही कभी जब शाम ढले तब याद हमें भी कर लेना

आया था यहाँ बेगाना सा चल दूंगा कहीं दीवाना सा
दीवाने के खातिर न अपने सर पे इल्जाम लेना
आंचल में सजा लेना कलियाँ जुल्फों में सितारें भर लेना


रास्ता जो मिले अंजान कोई
आ जाए अगर तूफान कोई
अपने को अकेला जान के तुम न आँखों में आंसू भर लेना
आंचल में सजा लेना कलियाँ जुल्फों में सितारें भर लेना

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